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Saturday 9 January, 2010
गज़ल
पढेर हैन परेर जानें
फूलेर पनि झरेर जानें
आराम सुकी पलायो पीर
सजीव छँदै, मरेर जानें
अभावखोलो साँघुरो गल्छी
दु:खका भेल तरेर जानें
जीवनदीप धिप्धिपे हुँदा
आशाका तेल भरेर जानें
जानेर थोरै नजानी धेरै
समयसंगै सरेर जानें
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